हिंदी भाषा का इतिहास विकास MCQ विषय हिंदी व्याकरण और भाषा विज्ञान का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो लगभग सभी प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे कि UPSSSC PET, SSC CGL, UPSC, CTET, UPTET, B.Ed, Police, Lekhpal, और अन्य राज्य स्तरीय परीक्षाओं में पूछा जाता है। इस विषय के अंतर्गत यह समझाया जाता है कि हिंदी भाषा किस प्रकार अस्तित्व में आई, किन-किन भाषाओं से उसका विकास हुआ, और वह आज किस रूप में हमारे सामने है।

हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास MCQ Test Series
हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास MCQ 1
Question : 12
Time: 10 Min.
हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास MCQ 2
Question : 12
Time: 10 Min.
हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास MCQ 3
Question : 12
Time: 10 Min.
MCQ टेस्ट की विशेषताएँ:
- टॉपिक-आधारित MCQ प्रश्न जो परीक्षा में बार-बार पूछे जाते हैं
- प्रत्येक प्रश्न के साथ स्पष्टीकरण (Explanation)
- प्रश्न तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक दोनों प्रकार के
- Mock Test द्वारा परीक्षा पैटर्न की भली भांति समझ |
हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास:
हिंदी भारत की सबसे प्रमुख और व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा है, जो इंडो-आर्यन भाषा परिवार का हिस्सा है। यह भारत की राजभाषा और संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में से एक है। हिंदी का इतिहास और विकास संस्कृत, प्राकृत, और अपभ्रंश जैसी प्राचीन भाषाओं से लेकर आधुनिक हिंदी तक के लंबे सफर को दर्शाता है। यह लेख हिंदी भाषा के उद्भव, विकास, और इसके विभिन्न चरणों को विस्तार से समझाता है। यह सामग्री कॉपीराइट-मुक्त है और विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों से संकलित की गई है।
हिंदी भाषा का उद्भव:
हिंदी का उद्भव इंडो-यूरोपियन भाषा परिवार की इंडो-आर्यन शाखा से हुआ है। इसका मूल संस्कृत भाषा में निहित है, जो प्राचीन भारत की साहित्यिक और धार्मिक भाषा थी। संस्कृत से प्राकृत और अपभ्रंश भाषाएँ विकसित हुईं, जो हिंदी के विकास का आधार बनीं। हिंदी का विकास निम्नलिखित चरणों में देखा जा सकता है:
- वैदिक काल (1500 ई.पू.-500 ई.पू.)
- इस काल में संस्कृत वैदिक साहित्य (ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि) की भाषा थी।
- वैदिक संस्कृत धार्मिक ग्रंथों और यज्ञों की भाषा थी, जो सामान्य जनता से अलग थी।
- इस काल में हिंदी का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था, लेकिन संस्कृत इसका मूल स्रोत थी।
- प्राकृत और पाली (500 ई.पू.-500 ई.)
- संस्कृत से प्राकृत भाषाएँ विकसित हुईं, जो जनसामान्य की भाषा थीं।
- प्राकृत की विभिन्न शाखाएँ जैसे शौरसेनी, मागधी, और अर्धमागधी थीं।
- पाली, जो बौद्ध धर्म की भाषा थी, भी प्राकृत का एक रूप थी।
- शौरसेनी प्राकृत को हिंदी का निकटतम आधार माना जाता है, क्योंकि यह उत्तर भारत में बोली जाती थी।
- अपभ्रंश (500 ई.-1000 ई.)
- प्राकृत से अपभ्रंश भाषाएँ विकसित हुईं, जो हिंदी के विकास का मध्यवर्ती चरण थीं।
- अपभ्रंश का अर्थ है “विकृत” या “संस्कृत से परिवर्तित”। यह भाषा सरल और बोलचाल के लिए उपयुक्त थी।
- अपभ्रंश में रचित साहित्य, जैसे दोहा और चौपाई, हिंदी काव्य की नींव बने।
हिंदी का प्रारंभिक विकास (1000 ई.-1800 ई.)
हिंदी का स्वतंत्र रूप मध्यकाल में अपभ्रंश से विकसित हुआ। इस काल में हिंदी विभिन्न बोलियों के रूप में उभरी, जैसे ब्रज, अवधी, और खड़ी बोली। इस अवधि को हिंदी साहित्य का आदिकाल कहा जाता है।
- आदिकाल (1000 ई.-1400 ई.)
- इस काल में हिंदी साहित्य का प्रारंभ हुआ।
- प्रमुख रचनाएँ: सिद्ध और नाथ संतों की रचनाएँ, जैसे गोरखनाथ के दोहे।
- जैन कवियों ने अपभ्रंश और प्रारंभिक हिंदी में रचनाएँ लिखीं, जैसे पुष्पदंत की “महापुराण”।
- इस काल में हिंदी की बोलियाँ क्षेत्रीय स्तर पर विकसित हो रही थीं।
- भक्तिकाल (1400 ई.-1700 ई.)
- यह हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल था, जिसमें भक्ति आंदोलन ने हिंदी को समृद्ध किया।
- प्रमुख कवि:
- कबीर: निर्गुण भक्ति के कवि, जिन्होंने खड़ी बोली और अवधी में दोहे और साखियाँ लिखीं।
- सूरदास: सगुण भक्ति के कवि, जिन्होंने ब्रजभाषा में “सूरसागर” की रचना की।
- तुलसीदास: अवधी में “रामचरितमानस” की रचना, जो हिंदी साहित्य की कालजयी कृति है।
- इस काल में हिंदी की बोलियाँ (अवधी, ब्रज, मैथिली) साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित हुईं।
- रीतिकाल (1700 ई.-1800 ई.)
- इस काल में श्रृंगार रस और अलंकारिक साहित्य का विकास हुआ।
- प्रमुख कवि: बिहारी (बिहारी सतसई), केशवदास (रसिकप्रिया), और मतिराम।
- ब्रजभाषा इस काल की प्रमुख साहित्यिक बोली थी।
आधुनिक हिंदी का विकास (1800 ई.-वर्तमान)
आधुनिक हिंदी का विकास 19वीं सदी में शुरू हुआ, जब खड़ी बोली को साहित्यिक और प्रशासनिक भाषा के रूप में अपनाया गया। इस काल में हिंदी ने अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई।
- आधुनिक काल का प्रारंभ (1800 ई.-1900 ई.)
- भारतेंदु युग: भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक रूप दिया।
- प्रमुख रचनाएँ: “भारत दुर्दशा”, “अंधेर नगरी”।
- हिंदी को अंग्रेजी और उर्दू के प्रभाव से मुक्त करने का प्रयास हुआ।
- इस काल में हिंदी पत्रकारिता का विकास हुआ, जैसे “उदंत मार्तंड” (1826) और “कविवचन सुधा”।
- भारतेंदु युग: भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक रूप दिया।
- द्विवेदी युग (1900 ई.-1920 ई.)
- महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी को शुद्ध और मानकीकृत करने का कार्य किया।
- उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया।
- पत्रिका “सरस्वती” के माध्यम से हिंदी साहित्य को प्रोत्साहन मिला।
- छायावाद (1920 ई.-1936 ई.)
- छायावाद हिंदी काव्य का स्वर्णिम युग था, जिसमें प्रकृति, प्रेम, और रहस्यवाद पर बल दिया गया।
- प्रमुख कवि: जयशंकर प्रसाद (“कामायनी”), सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (“राम की शक्ति पूजा”), सुमित्रानंदन पंत, और महादेवी वर्मा।
- इस काल में हिंदी कविता में नवीनता और भावनात्मक गहराई आई
- प्रगतिवाद और प्रयोगवाद (1936 ई.-1950 ई.)
- प्रगतिवाद: सामाजिक समानता और जनवादी विचारों पर आधारित साहित्य।
- प्रमुख कवि: रामविलास शर्मा, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल।
- प्रयोगवाद: नवीन शैली और प्रयोगों पर आधारित साहित्य।
- प्रमुख कवि: अज्ञेय (“हरी घास पर क्षण भर”)।
- प्रगतिवाद: सामाजिक समानता और जनवादी विचारों पर आधारित साहित्य।
- समकालीन हिंदी साहित्य (1950 ई.-वर्तमान)
हिंदी की बोलियाँ:
हिंदी की कई बोलियाँ हैं, जो इसके विकास में महत्वपूर्ण रही हैं:
- पश्चिमी हिंदी: खड़ी बोली, ब्रजभाषा, हरियाणवी, कन्नौजी।
- पूर्वी हिंदी: अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी।
- राजस्थानी: मारवाड़ी, मेवाड़ी।
- बिहारी: भोजपुरी, मैथिली, मगही।
- पहाड़ी: कुमाऊँनी, गढ़वाली। खड़ी बोली को आधुनिक हिंदी की आधारशिला माना जाता है।
हिंदी का वैश्विक प्रभाव
- हिंदी विश्व की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
- मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, और नेपाल जैसे देशों में हिंदी बोली जाती है।
- संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास जारी हैं।
- हिंदी सिनेमा और साहित्य ने वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष:
यदि आप सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं और हिंदी विषय में महारथ प्राप्त करना चाहते हैं, तो “हिंदी भाषा का इतिहास एवं विकास mcq” से जुड़े MCQ का अभ्यास करना आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। यह टॉपिक न केवल भाषा के प्रति आपकी समझ को गहरा करता है, बल्कि आपको परीक्षा में एक अतिरिक्त बढ़त भी देता है।
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